संचारस्य मूल्याङ्कनम् : गुहाचित्रणं कृत्रिमबुद्धिपर्यन्तं | Evaluation of communication Cave paintings to AI

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  भाषायाः दृष्ट्या भारतं समृद्धं राष्ट्रम् अस्ति ।  भारते सहस्रवर्षेभ्यः ज्ञानस्य वाचिकसञ्चारः प्रचलति ।  “ऋषियो मन्त्रद्रष्टार:” अनेन स्पष्टं भवति यत् ऋषयः प्रथमं मन्त्रस्वरूपं दृष्टवन्तः अर्थात् तेषां अक्षराणां रूपं कीदृशं इति ते अवगच्छन्।  सरस्वतीतीरे उपविष्टाः ऋषयः मन्त्रान् दृष्ट्वा तेषां शक्तयः अवगत्य अनुभूय च ।  सरस्वतीनद्याः अन्तर्धानानन्तरं सिन्धुनद्याः तटे समकालीनसंस्कृतेः विकासः अभवत्, ततः लिप्याः उत्पत्तिः अभवत्

विश्वे ये मानवाः पर्वतस्य गुहासु निवसितुं आरब्धाः ते सर्वे प्रतीकात्मकरूपेण, ध्वन्यात्मकरूपेण च वार्तालापं कुर्वन्ति स्म ।  ते गुहानां भित्तिषु यत् दृष्टवन्तः तत् चित्रयितुं आरब्धवन्तः ।  यथा पशुपक्षिजलजीवादिचित्रणं गुहासु दृश्यन्ते                                      

          अस्मिन् विकासक्रमे मनुष्याः केषाञ्चन प्रतीकानाम् उपयोगं कर्तुं आरब्धवन्तः ।  गुहानां भित्तिषु, इष्टकासु, शिलासु च प्रतीकाः उत्कीर्णाः आसन् ।  सा एव प्रतीकात्मकभाषा क्रमेण सुन्दराक्षराणां रूपं ग्रहीतुं आरब्धा ।  या लिपि उच्यते व्यथते स्म।                 

                 विश्वस्य प्रथमा लिपिः “सिन्धु लिपि” अस्ति ।  एषा चित्रलिपिः ।  अत: अद्यावधि न ज्ञाता जगति कठिनतमा लिपिः एषा एव ।  भारतस्य प्रथमा लिपि ब्राह्मी ।  इयं लिपिः सुमेर मेसोपोटामियादेशे ३५०० ईपू तः समीपे आविष्कृता ।  ब्राह्मीलिपिः अनेकानां भारतीयलिपिनां पूर्वजः अस्ति ।  देवनागरीलिपिः ब्राह्मीतः एव विकसिता अस्ति ।  भारतीयसंविधाने देवनागरी राष्ट्रियलिपिः इति मान्यतां प्राप्तवती अस्ति ।  विश्वे केवलं प्रायः विंशतिः लिप्यः प्रचलिताः सन्ति ।  कालान्तरे लेखनकला विकसिता, लेखनार्थं विविधसामग्रीणां उपयोगः आरब्धः ।  मयूरपक्षेणः, बर्रूकलमस्य वा अन्येषां वृक्षाणां कलमानां उपयुज्यन्ते स्म ।  मसेः कृते इंगुदतैलादिरससाहाय्येन काष्ठाङ्गारात् मसिः निर्मातुं आरब्धा ।  विभिन्नाक्षराणां मसेः कृते विविधानि पुष्पाणि, लाक्षा इत्यादीनि च उपयुज्यन्ते स्म ।  सुवर्णपत्राणि, रजतपत्राणि, ताम्रपत्राणि इत्यादीनि नृपैः लेखनार्थं प्रयुक्तानि आसन् ।  सामान्यलेखनार्थं भुर्जपत्र-ताडपत्रस्य, तमालपत्रस्य, पटस्य, मृत्तिकायाः ​​लेखनपट्ट: इत्यादीनां प्रयोगः कृत: ।  सूचनायै शिलालेखाः, स्तम्भाः इत्यादयः निर्मिताः आसन् ।

          अस्मिन् विकासक्रमे मनुष्यः टङ्कनयन्त्रस्य (टङ्कनयन्त्रस्य) आविष्कारं कृतवान् ।  यस्मात् लिखितसामग्री टङ्किता आसीत् ।  अस्मिन् क्रमे सङ्गणकस्य कीबोर्डस्य आविष्कारः अभवत् ।  टङ्कणेन पाण्डुलिप्याः, पत्राणां, दस्तावेजानां च निर्माणं सुकरं जातम् ।  तदनन्तरं चलदूरवाणी , लैपटॉपस्य आविष्कारः अभवत् तथा च क्रमेण AI इति यत् वक्तुं उत्तराणि प्रस्तुतं करोति तस्य आविष्कारः अभवत् ।  अद्य AI इत्येतत् एतावत् समृद्धं जातम् यत् अस्माकं सर्वेषां प्रश्नानाम् उत्तराणि अस्माकं समस्यानां समाधानं च तत्क्षणमेव प्रददाति।

                                                  भारतस्य प्रमुखाः लिपयः

                                            [ प्रमुख भारतीय लिपियां ]

    सिंधु लिपि

ब्राह्मी लिपि

खरोष्ठी लिपि

गुप्त लिपि

शारदा लिपि

नागरी लिपि

देवनागरी लिपि

कलिंग लिपि

 ग्रंथ लिपि

वेट्टेलुट्टू लिपि

कदम्ब लिपि

तमिल लिपि

संचार का मूल्यांकन: गुफा चित्र से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक

भाषा के मामले में भारत एक समृद्ध राष्ट्र रहा है । मौखिक रूप से ज्ञान का आदान-प्रदान कई हजारों सालों से भारत में होता रहा है। “ऋषियो मंत्रदृष्टार:”  इससे स्पष्ट होता है, कि ऋषियों ने पहले मंत्रों के स्वरूप को देखा अर्थात उन अक्षरों का स्वरूप कैसा होता है इसको समझा । सरस्वती नदी के तट पर बैठकर ऋषियों ने मंत्रों को देखा तथा उनकी ऊर्जाओं को समझा व महसूस किया । सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने पर तत्कालीन संस्कृति सिंधु नदी के तट पर विकसित हुई और वहीं से लिपियों का आरंभ हुआ।

              दुनिया में जो मानव पहाड़ों में गुफाओं में रहने लगे वे सभी मानव सांकेतिक व ध्वन्यात्मक रूप से बात करते थे। वे जो देखते थे, उनका चित्रण गुफाओं की दीवारों पर करने लगे। जैसे कि जानवरों, पक्षियों, जलीय जीवों इत्यादि का चित्रण गुफाओं में मिलता है।

                         इसी विकास क्रम में मानव ने कुछ चिन्हों का प्रयोग किया। चिन्हों को गुफाओं की दीवारों ईंटों ,पत्थरों पर उकेरा। वही चिन्हात्मक भाषा धीरे-धीरे सुंदर अक्षरों का रूप लेने लगी। जो की लिपि कहलाने लगी।

                               दुनिया की सबसे पहली लिपि “ सिन्धुलिपि ” हैं। यह चित्र लिपि है। अतः यह विश्व की कठिनतम लिपि है, जिसे आज तक समझा नहीं जा सका है। भारत की सबसे पहले लिपी ब्राह्मी है। इस लिपि का आविष्कार सुमेर मेसोपोटामिया में लगभग 3500 ईसा पूर्व में हुआ था। ब्राह्मी लिपि भारत की कई लिपियो की पूर्वज है। देवनागरी लिपि ब्राह्मी से ही विकसित हुई है। भारतीय संविधान में देवनागरी को राष्ट्रीय लिपि की मान्यता दी गई है। विश्व में लगभग 20 ही लिपियां प्रचलित है। कालांतर में लेखन कला का विकास हुआ और लिखने के लिए विविध सामग्रियों का प्रयोग किया जाने लगा । लेखनी के रूप में मोर पंख तथा बर्रू की कलम अथवा अन्य वृक्षों की कलम का प्रयोग किया गया । स्याही के लिए काष्ठ कोयले को इंगुदी के तेल और अन्य रसों की सहायता से स्याही बनाई जाने लगी । अलग-अलग वर्णों की स्याही के लिए विविध पुष्पों और लाक्षा आदि का प्रयोग किया गया। लिखने के आधार के लिए राजाओं द्वारा स्वर्णपत्र , रजतपत्र , ताम्रपत्र आदि का प्रयोग किया जाता था । सामान्य लेखन के लिए भुर्जपत्र ,ताड़पत्र, तमालपत्र, वस्त्र , मृत्तिकापाटी आदि प्रयोग में लाई गई। सूचना के लिए शिलालेख , स्तंभलेख आदि का निर्माण किया गया।

            इसी विकास क्रम में मानव ने टंकण यंत्र (टाइपराइटर) का आविष्कार किया। जिससे लिखित सामग्री टंकित हुई । इसी क्रम में कंप्यूटर की-बोर्ड का आविष्कार हुआ । टाइपिंग ने पांडुलिपि तैयार करने ,पत्र, दस्तावेज तैयार करने को आसान बना दिया। इसके बाद मोबाइल, लैपटॉप का आविष्कार हुआ धीरे-धीरे बोलने पर उत्तर प्रस्तुत करने वाले AI का आविष्कार हुआ। आज AI इतना समृद्ध हो चुका हैं हमारे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर तथा समस्याओं का समाधान तत्काल प्रस्तुत करता है।


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