भारतीय नारी : गंगा-सी धैर्यवान, सीता-सी त्यागमयी और आधुनिकता में प्रखर स्वरूप
।। मैं भारतीय नारी ।।
मैं भारतीय नारी अपनी जड़े बखूबी जानती हूं,
मैं शक्ति, भक्ति और सच्चे प्रेम को भी पहचानती हूं।
मैं सीमाओं में बंधे रहना चाहती भी हूं किंतु,
तब तक जब तक सीमाएं बेडियां बन जाए।
मैं धैर्य में गंगा हूं, सीता हूं, सती हूं, गौरी भी हूं, गौतम नारी अहिल्या हूं,अत्रि पत्नी अनुसुइया भी हूं।
मैं गार्गी, सूर्या, इंद्रायणी सी विदुषी हूं।
मैंत्रैयी सी तपस्विनी, कात्यायनी सी गृहकुशला हूं।
त्रिकाल संध्या भी मैं हूं, इंद्र पत्नी शचि भी मैं, शतरूपा मानव जननी, अरुंधति सी वेदों में पारंगत हूं ।
घोषा,विश्वावारा, अपाला सी खोजी हूं,
तपती, ब्रह्मवादिनी,रोमशा सी अन्नोत्पादक, प्रचारक भी हूं।
मैं लोपामुद्रा सी सिखाती राम को भी हूं,
मैं उशिज, प्रातिथेयी सी पुत्रों को वेद सिखाती हूं।
फिर भी विद्योत्तमा सी ज्ञानी निष्कपट होकर, पुरुषों के छल-कपट के खेल में आ जाती हूं।
आज, मैं सुनीता हूं, उषा हूं, कल्पना, हरिता,
लक्ष्मी सहगल सी आधुनिक भारत की नारी हूं।
मैं पुरुषों का सम्मान करती हूं, कराती भी हूं,
पुरुषों के आगे बढ़ती हुं, बढ़ाती भी हुं।
कंधे से कंधा मिलाकर खुद को निखारती भी हूं,
मैं भारत की नारी अपनी जड़े बखूबी जानती हूं।