Sanskrit Shlokas on greed with Hindi Meaning लोभ के ऊपर संस्कृत के श्लोक
Sanskrit Shlokas on Greed
लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, २७)
लोभ नामक भाव से क्रोध का प्रादुर्भाव होता है । क्योकि जिस वस्तु को लोभ होगा उसको प्राप्त करने के प्रयत्न भी अनेक होंगे क्योकि वही लोभ कामना के उदय का कारण बनता है फिर भी अगर वह वस्तु प्राप्त नहीं हुई तो मनुष्य का विवेक क्षीण हो जाता है, वह विवेक शून्य हो जाता है और वही विवेक शून्यता अथवा विवेक हीनता व्यक्ति के नाश का कारण बनती है । अर्थात् लोभ समस्त पाप कर्मों कारणभूत है ।
लोभेन बुद्धिश्चलति लोभो जनयते तृषाम् ।
तृषार्तो दुःखमाप्नोति परत्रेह च मानवः ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, १४२)
लोभ के कारण ही बुद्धि चलायमाती हो जाती है उसमें स्थिरता की कमी आ जाती है, अर्थात् विचलित हो जाती है । विचलित बुद्धि में लोभ सरलता से शान्त न होने वाली तृष्णा (प्यास) को जन्म देता है । लोभजनित तृषा से ग्रसित मनुष्य सर्वदा दुःख को प्राप्त करता है, वह दुःख इस लोक में और परलोक में भी साथ रहता है ।
लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च ।
लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति ॥
लोभ मनुष्य जीवन के समस्त पापकर्मों का मूल कारण है , लोभ के कारण ही सभी संकटों का उदय होता है , लोभ के कारण ही एक मनुष्य दुसरे मनुष्य का शत्रु हो जाता है और अतिलोभ के कारण हि सब विनाश होता है।
त्रिविधां नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
भगवद्गीता 16/21
भगवान् श्री कृष्ण ने तीन नरक के द्वारों का उल्लेख किया है जो जिस मनुष्य के पास होता है वह अपना ही नश कर लेता है । ये द्वार हैं – काम अर्थात् कमनाएं. क्रोध तथा लोभ । अतः इन तीनो का सदैव जीवन में त्याग करना चाहिए ।