Sanskrit slogan with Hindi meaning

20 संस्कृत सूक्तियाँ हिन्दी अर्थ सहित Sanskrit slogan with Hindi meaning

Spread the love

Sanskrit slogan with Hindi meaning

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माऽमृतं गमय । – बृह. 1/3/28
मुझे असत् से सत् की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो ।

पुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः । ऋग्. 6/75/14
प्रत्येक मनुष्य परस्पर मनुष्य की सभी प्रकार से रक्षा करें ।

घृतात् स्वादीयो मधुनश्च वोचत । ऋग्.8/24/20
घृत (घी) और मधु (शहद) से भी अधिक स्वादु और मधुर वचन बोलिए ।

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः । वा. सं. 9/23
हम राष्ट्र में अग्रगण्य होकर जागृत रहें । हमेशा सचेत रहें ।

मा गृधः कस्यस्विद् धनम् । ईशा. 1
किसी के भी धन को लोभ मत करो ।

धर्मं चर । धर्मान्न प्रमदितव्यम् । तैत्ति. 1/11
सदैव धर्म का आचरण कीजिए । धर्म सम्बन्धित कार्यों प्रमाद नहीं करना चाहिए । धर्म से डिगना नहीं चाहिए ।

सं वां मनांसि सं व्रता, समु चित्तान्याकरम् । यजु. 12/58
हमारे मन, व्रतादि कर्म और चित्त विचार समान हों ।

ईशा वास्यमिदं सर्वम् , यत् किञ्चिद् जगत्यां जगत् । यजु. 40/1
इस संसार में जो कुछ भी है वह सब कुछ परब्रह्म परमात्मा मे ही समाहित है ।

मधुमतीं वााचं वदतु शान्तिवाम् । अथर्व.3/30/2
माधुर्य युक्त, सुखद और शान्तिपूर्ण वाणी बोलें ।

मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे । यजु. 36/18
सभी मनुष्य परस्पर मित्रवत् दृष्टि से देखें ।

नास्त्यकृतः कृतेन । मुण्ड.1/2/12
कर्म सदृश शाश्वत तत्त्व कहीं नहीं है ।

भर्गो देवस्य धीमहि । यजु. 30/2
हम परब्रह्म परमात्मा के दिव्य तेज को धारण करें ।

तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः । यजु. 40/7
सभी प्राणियों में समान दृष्टि रखने वाले तथा सर्वत्र समदर्शी रहने वाले सर्वत्र एकत्व का दर्शन करने वाले ज्ञानी को मोह कहँ और शोक कहाँ ?

उच्छ्रयस्व महते सौभगाय । ऋग्. 3/8/2
महान् सौभाग्य के लिए उठो ।

सम्भाषमाणः प्रियो है व भवति । शां आ. 4/4
सम्भाषणशील व्यक्ति सभी को प्रिय होता है ।

पशून्न निन्देत् तद्व्रतम् । छान्दो. 2/18
जो पशुओं की भी कभी निन्दा न करे वही व्रत है ।

बहुप्रजा निर्ऋतिरा विवेश । अ. 9/10/10
अधिक सन्ततियों वाला व्यक्ति कष्ट का भागी होता है ।

राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम् । ऋग्. 10/173/5
राष्ट्र को स्थिर स्वरुप में धारण करों । अर्थात् राष्ट्र के प्रति समर्पित रहो ।

सर्वे परिक्रोशं जहि । ऋग्.1/29/7
मात्सर्य का यथाशक्ति हर प्रकार से त्याग करो ।

प्रणीतिरस्तु सूनृता । ऋग्. 6/48/20
स्तय वाणी एवं प्रिय वाणी ही ऐश्वर्य व सम्पदा देने वाली होती है ।


Spread the love

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.