Sanskrit Shlokas on Moh with meaning in hindi
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ।।
भगवद्गीता – 2.52
जब तुम्हारी बुद्धि, आत्मा और अनात्मा के विवेकरुपी ज्ञान को मलिन करने वाली मोहरुपी कालिमा का उल्लङ्घन कर जाएगी अर्थात् जब बुद्धि शुद्ध हो जाएगी तब तुम्हे तुम्हारे लिए सुनने योग्य और तुम्हारे द्वारा सुने हुए विषयों से वैराग्य की प्राप्ति हो जाएगी । अर्थात् तब तुम्हारे लिए संसार के सब विषय निष्फल हो जाएंगे ।
सुता न यूयं किमु तस्य राज्ञः सुयोधनं वा न गुणैरतीताः ।
यस्त्यक्तवान्वः स वृथा बलाद्वा मोहं विधत्ते विषयाभिलाषः ॥
।। किरातार्जुनीयम् ३.१३
क्या आप लोग उस राजा धृतराष्ट्र के पुत्र नहीं हैं ? अवश्य हैं । क्या आप सभी ने अपने शान्तिदानदाक्षिण्यादि उत्तम गुणों के द्वारा दुर्योधन को पीछे नहीं छोड़ दिया है ? अवश्य ही छोड दिया है । उसने किसी कारण के न होने पर भी आप जैसे लोगों त्याग दिया । अतः यह सत्य ही है कि विषयों कि अभिलाषा मनुष्यों को मोह के बल से अविवेकी ही बना देती है।
कामं क्रोधं लोभं मोहं त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम् ।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥
काम, क्रोध, लोभ और मोह का त्याग करके, स्वयं में भावों को स्थिर करके विचार करो कि मैं कौन हूँ ? आत्मज्ञान से विहीन जो भी व्यक्ति है वह मूढ है मोह में फंसा हुआ है । ऐसे मोह से ग्रसित प्राणी इस नरक में बार बार गिरते हैं ।
ममत्वधीकृतो मोहः सविशेषो हि देहिनाम् ।।
ममत्व अर्थात् अहङ्कारयुक्त बुद्धि वाले शरीरी प्राणियों में सशक्त और विशेष प्रकार का मोह होता है ।