Six types of teachers in human life

Six types of teachers in human life षडेते गुरवः स्मृताः

Spread the love


मनुष्य जीवन में शिक्षा का बहुत अधिक महत्व है । अतः शिक्षा देने वाले शिक्षक का महत्व भी कम नहीं है । मानव जीवन में शिक्षा मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है । शिक्षा उतनी ही आवश्यक है जितना की भोजन वस्त्रादि । मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में शिक्षा ग्रहण करता है । जन्म से लेकर मृत्यु तक उसका शिक्षण निरन्तर चलता ही रहता है । शास्त्रों में भी उल्लेख है और सामाजिक व्यवस्था ने भी स्वीकार किया है कि जीवन मे प्रथम गुरु अथवा शिक्षक होती है – माँ । बाल्यकाल में मनुष्य प्राय पांच से छः वर्षों तक माता के संरक्षण में शिक्षा ग्रहण करता है । जिसमें वह सम्बन्धों को पहचानना तथा अन्य क्रियाकलापों को समझता है । धीरे – धीरे उसके जीवन में कई प्रकार के शिक्षकों का आगमन होता है । जो उसे विभिन्न प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं ।

मानव समाज भी अपने आप में एक शिक्षक की ही भूमिका निभाता है । यहाँ भी अनेक प्रकार के अनुभवों की शिक्षा प्राप्त होती है । इस प्रकार सामाजिक स्तर पर मनुष्य हमेशा कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है ।

जब मनुष्य विद्यालय में प्रवेश करता है तब उसे शास्त्रसम्मत विषयों का ज्ञान करवाने वाली शिक्षा प्राप्त होती है । अनेक प्रकार के विषय सीखने को मिलते है । उनको सीखाने वाले अनेक शिक्षक वहाँ उपलब्ध होते है । ये विषय भविष्य में मनुष्य के जीवन निर्वण का साधन बनते है । इनके द्वारा ही मनुष्य चारों पुरुषार्थों धर्म अर्थ काम और मोक्ष को सिद्ध करता है । और सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करता है ।

जीवन मे शिक्षा इसलिए भी आवश्यक है कि जिसके द्वारा वह यह समझ सके कि किस अवस्था में किस स्थिति में क्या करना चाहिए । तात्पर्य यह है कि उसमें विवेक का विकास होता है । शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य एक विवेकशील प्राणी बन पाता है ।

इन सभी कार्यों और करणों के पीछे, प्रत्येक गतिविधि के पीछे तथा प्रत्येक उपलब्धि के पीछे एक शिक्षक अवश्य होता है जो जीवन में अनुभवों को प्राप्त करने के मार्ग को प्रशस्त करता है । उचित अनुचित का भेद समझाता है । कृत्य-अकृत्य का बोध करवाता है । हमारे शास्त्र में छः प्रकार के गुरुओं का उल्लेख है –


प्रेरकः सूचकश्चैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृता ।।

जीवन काल मे छः प्रकार के गुरु होते है जो छः भिन्न – भिन्न प्रकार के अत्यावश्यक मार्गों को प्रकाशित करते है । प्रेरकः अर्थात् प्रेरित करने वाले । जो लोग हमें जीवन मे किसी सत्कार्य के लिए प्रेरित करें अथवा हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बने वे हमारे प्रेरक गुरु होते है । सूचकः अर्थात् सूचित करने वाले । जो लोग हमें किसी कार्य की प्रवृत्ति की सूचना दें अथवा हमें युक्त – अयुक्त के विचारों से सूचित करें वे हमारे सूचक गुरु होते हैं ।

वाचकः अर्थात् वाचन करने वाले । विद्यालय व महाविद्यालय आदि में जो गुरु हमें विविध विषयों के व्याख्यान करके हमारे ज्ञान को बढाते है वे हमारे वाचक गुरु होते हैं । दर्शकः अर्थात् मार्गदर्शन करने वाले । जो लोग जीवन में निर्णयात्मक कार्यों में सहायक होते है और हमारा मार्गदर्शन करते है वे हमारे दर्शक गुरु होते है । शिक्षकः यह शब्द समाज में सर्वाधिक प्रचलित है । शिक्षक का अर्थ है शिक्षा देने वाला ।

समाज में यह पद प्रत्येक विद्यालय में विषय को पढाने वाले के लिए उपाधि के रुप में प्रचलित है । वस्तुतः जो हमें जीवन में शिक्षा प्राप्त करने के अनेक अवसर उपलब्ध करवाता है । वही हमारा शिक्षक गुरु है । बोधकः अर्थात् ज्ञान प्रदान करने वाला । जिसके द्वारा हमें जीवन में बोध प्राप्त हो, किसी विषय का गूढ ज्ञान प्राप्त हो या कुछ ऐसा प्राप्त हो जिसकी व्याख्या न की जा सके । वह हमारे बोधक गुरु होते है ।


Spread the love

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.