ब्रह्माण्ड के चौदह भुवन – The fourteen realms of the universe.
तीन लोग चौदह भुवन, प्रेम कहूं ध्रुव नाहि।
जगमग रह्यो जराव सौ, करोड़ श्री वृंदावन मांहि ।।
अर्थ:- तीनों लोकों में तथा 14 भुवनों में कहीं पर भी सहज प्रेम की प्राप्ति नहीं होती है, जबकि वृंदावन प्रदेश में हीरे मोतियों की तरह जगमगाता हुआ प्रेम सहज रूप से प्राप्त हो जाता है।।
यहां पर कवि ने तीन लोगों का और 14 भावनाओं का उल्लेख किया है। इसी प्रकार से कई ग्रंथों में तथा पुराणों में तीन लोकों का एवं 14 भुवनोंका उल्लेख प्राप्त होता है। कौन से हैं तीन लोक तथा कौनसे हैं 14 भुवन।
तीन लोक: –
जैसे कि गायत्री मंत्र में तीनों लोकों का नाम आता है –
ॐ भूर्भुवः स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
यहां भू ,भुवः , स्व: अर्थात् भू -भूमि (पृथ्वी) ,भुवः- भुवर्लोक, स्व: – स्वर्गलोक।
14 भुवन:-
इसमें सात ऊर्ध्वलोक तथा सात अधोलोकों की गणना की जाती है। जिनके नाम इस प्रकार से है – सत्यलोक
तपोलोक
जनलोक
महर्लोक
स्वर्लोक
भुवर्लोक
भूलोक=
अतल
वितल
सुतल
तलाताल
महातल
रसातल
पाताल
सबसे पहले हम ऊर्ध्वलोकों पर चर्चा करते हैं : –
- भूलोक (पृथ्वी):- पृथ्वी की ऊंचाई 70000 योजन है।पृथ्वी पर मनुष्यों का तथा जीव जंतुओं का निवास है। पृथ्वी को मृत्यु लोक भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर सभी जीवो का मृत्यु समय निश्चित होता है।
- भुवर्लोक :- इस लोक का क्षेत्र पृथ्वी से सूर्य तक का माना जाता है ,जो लगभग 100000 योजन की दूरी तक है। यह लोक जीवन मृत्यु के बीच का स्थान है। दिव्य शक्तियां इस लोक में विचरण करती है।
- स्वर्लोक :- इस लोक को स्वर्ग लोक भी कहा जाता है। भुवर्लोक से इस लोक की दूरी लगभग 14 लाख योजन है। इस लोक का क्षेत्र सूर्य से लेकर ध्रुव क्षेत्र तक माना जाता है। इन्द्रादि देवता इस लोक में निवास करते हैं, तथा देवताओं का अधिकार इसी लोक तक माना जाता है।
पृथ्वी से एक लाख योजन ऊपर सूर्य
सूर्य से एक लाख योजन ऊपर चंद्र मंडल
चंद्र मंडल से 1 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मंडल
नक्षत्र मंडल से 200000 योजन ऊपर बुध मंडल
बुध मंगल से 200000 योजन ऊपर शुक्र मंडल
शुक्र मंडल से 2 लाख योजन ऊपर मंगल
मंगल से 2 लाख योजन ऊपर बृहस्पति
बृहस्पति से 200000 योजन ऊपर शनिश्चर
शनिश्चरा से एक लाख योजन ऊपर सप्तर्षि मंडल
सप्तर्षि मंडल से एक लाख योजन ऊपर ध्रुव हैं।
ध्रुव से ऊपर महर्लोक की सीमा शुरू होती है। - महर्लोक :- यह लोग ध्रुव से लगभग एक करोड़ योजन ऊपर की ओर है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है , यह लोग महान ऋषि मुनियों का निवास स्थान है। सप्तर्षियों के समान ऋषि यहां के निवासी माने जाते हैं।इस लोक में एक कल्प तक जीवित रहने वाले लोग रहते हैं। इसका विस्तार एक करोड़ योजन है ।
- जनलोक :- यह लोक महर्लोक से दो करोड़ योजन की ऊंचाई पर माना जाता है। इस लोक का विस्तार 2 करोड़ योजन है। इस लोक में सृष्टि की रचनात्मक शक्तियों का निवास माना जाता है । यहां पर सनक – सनंदन इत्यादि देवतुल्य ऋषि गणों का निवास माना जाता है।
- तपोलोक :- यह लोक जनलोंक से लगभग 8 करोड़ योजन की दूरी पर है। यहां बिना शरीर वाले वैराज आदि देवता रहते हैं । यह लोक तप व साधना का केंद्र है। मनीषी यहां ध्यान लगाते हैं।
- सत्यलोक :- यह अंतिम लोक माना जाता है। यह लोग तपलोक से लगभग 12 करोड़ योजन की ऊंचाई पर स्थित है। इसका विस्तार 48 करोड़ योजन है। सत्य की खोज करने वाले ऋषि मुनि अंत में इसी लोक को प्राप्त होते हैं। यह ब्राह्मादि देवताओं का निवास स्थान है । यह ब्रह्म ,सत्य , निर्माण की स्थिति का स्थान है । यह पुनर्जन्म व मृत्यु का निवारण करने वाला लोक है। ब्रह्म की खोज करने वाले अथवा प्राप्त करने वाले ऋषि- मुनि इसी लोक को प्राप्त होते हैं।
भू ,भुवः , स्व: ये तीन लोक प्रलय काल में पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं।
अब हम अधों लोकों के बारे में जानेंगे :-
- अतल :- हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि पृथ्वी की मोटाई लगभग 70000 योजन है, अतः यह लोक पृथ्वी से लगभग 10000 योजन नीचे की ओर माना जाता है। यहां की धरती सफेद मानी जाती है । मयदानव का पुत्र बल इस लोक में रहता है। जो 96 प्रकार की मायावी शक्तियों का ज्ञाता है।
- वितल :- यह लोग अतल लोक से लगभग 10000 योजन नीचे की ओर स्थित है। यहां की भूमि काली रंग की मानी जाती है। इस लोक में भगवान महादेव हाटकेश्वर के नाम से अपने पार्षद भूत गाणों के साथ रहते हैं। यहां शिव शक्ति के साथ विहार करते हैं , तथा यहां हाट नामक नदी बहती है।
- सुतल/नितल :- यह लोक वितल से 10000 योजन नीचे की ओर स्थित माना जाता है । यहां की भूमि हल्की नारंगी रंग की मानी जाती है। इस लोक में महान यशस्वी परम कीर्तिवान,पवित्र राजा विरोचन के पुत्र, प्रहलाद के पौत्र राजा बलि निवास करते हैं।
4.तलातल/गभस्तिमान :- इस लोक की स्थिति सुतल लोक से 10000 योजन नीचे मानी गई है। यहां की भूमि का रंग पीला माना जाता है। यहां पर स्वयं मयदानव रहता है। मयदानव विषयों का परम गुरु है । वास्तु कला का ज्ञाता है। देवी मंदोदरी मयदानव की पुत्री कही जाती है।मयदानव असुरों के वास्तुकार हैं। लंका नगरी की रचना उन्होंने ही की थी। - महातल:- यह लोग तलातल से लगभग 10000 योजन नीचे की ओर स्थित माना जाता है। यहां की भूमि कंकड- पत्थरों से भरी है । कश्यप ऋषि तथा उनकी पत्नी कद्रू से उत्पन्न “क्रोधवश” नामक सर्पों का एक समुदाय वहां रहता है ।इनमें कहुक, तक्षक , कालिया, सुषेण आदि प्रधान नाग रहते हैं।
- रसातल :- यह लोक महातल से लगभग 10000 योजन की गहराई पर स्थित है । यहां की भूमि पथरीली मानी जाती है। यहां देवताओं को परेशान करने वाले असुरों का निवास स्थान है।
- पाताल:- यह लोग अधो लोको का अंतिम लोक माना जाता है। यह लोक रसातल से 10000 योजन नीचे की ओर स्थित माना जाता है । यहां की भूमि स्वर्ण निर्मित कही गई है । पाताल का राजा वासुकी नाग है। क्रोध को धारण करने वाले प्राणी तथा मत्स्य कन्याएं यहां निवास करती हैं। यहां हिमालय के समान ही पर्वत भी है। पाताल लोक नागमणियों से चमकता रहता है । शंख , शंखचूड़ , कुलिक , धनंजय आदि विशालकाय सर्प यहां पर रहते हैं। इसी लोक में 30000 योजन नीचे शेषनाग का निवास स्थान माना जाता है।
Note:- उपर्युक्त जानकारी भागवत पुराण, विष्णु पुराण तथा ब्रह्मपुराण से प्राप्त की गई है ।पुराण ही इस ज्ञान के मूल स्रोत हैं।
Image Credit – Iscon_truth.com