हरतालिका व्रत: भारतीय व्रत और परंपराओं का वैज्ञानिक व सामाजिक विश्लेषण
Hartalika Vrat Scientific and Social Analysis of Indian Fasts and Traditions
भारतदेश अपनी संस्कृति और अपनी परम्पराओं के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है । कुछ लोग इन परम्पराओं को रुढी मानकर निभाते चले आ रहे है । किन्तु वस्तुतः इनके पीछे छिपे गूढ अर्थों को हम नहीं समझ पाते है । भारत की संस्कृत और परम्पराएं साधारण अथवा निरर्थक नहीं है ये पूर्णतः वैज्ञानिक है । इनके रहस्य को समझ पाना सभी के सामर्थ्य में नहीं है ।
हमारे प्राचीन आचार्यों ने हमारी परम्पराओं को वैज्ञानिक दृष्टि न देकर सामाजिक दृष्टि प्रदान की है अतः हम उन परम्पराओं का कभी वैज्ञानिक आंकलन नही करते । उनके समय पर वैज्ञानिक दृष्टि की अपेक्षा सामाजिक दृष्टि अधिक महत्वपूर्ण हुआ करती होगी अतः उन आचार्यों ने इसका स्वरुप वैसा बनाया । किन्तु आज का युग वैज्ञानिक युग है । आज हर प्रकरण को वैज्ञानिक कसौटी पर रखा जाता है । हमारी परम्पराएं भी वैज्ञानिक है इसके लिए सर्वप्रथम हमें इनकी वैज्ञानिक परख होना चाहिए ।
विज्ञान कुछ मैलिक नियमों पर कार्य करता है । जो कि एक प्रकार के तंत्र(System) पर आधारित है । उदाहरणार्थ हमारी संस्कृति में हरतालिका व्रत का महत्व है । यह उत्सव अनेकों वर्षों से भाद्रपदमास की तृतीया तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है । लेकिन इसमें एक नियम एसा है कि यह व्रत हस्त नक्षत्र वाली तिथि को ही मनाया जाना चाहिए । हमारे प्राचीन आचार्य अनेकों वर्षों पूर्व इतने सक्षम वैज्ञानिक थे कि उन्होने यह दिन निश्चित करके संसार को बताया कि हरतालिका तीज के दिन अवश्य ही हस्त नक्षत्र वाली तिथि होगी । और प्रतिवर्ष इस दिन हस्त नक्षत्र ही होता है । कभी इसका उलङ्घन नहीं हुआ । इतनी सटीक वैज्ञानिक गणना आज तक किसी देश के वैज्ञानिकों के द्वारा सम्भव नहीं हो पाई है जो अनेकों वर्षों से निरन्तर चली आ रही है ।
यह व्रत प्रकृति स्वरुपा माँ पार्वती और पुरुष स्वरुप भगवान् शंकर के दार्शनिक प्रतिबिम्ब पर आश्रित है । यह सृष्टि के नियमों का भी प्रतीक है कि प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि का निर्माण होता है । इसके लिए हमारे पुराणादि ग्रन्थ, कथाओं के द्वारा सामाजिक दृष्टि से हमें विज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान आदि महत्वपूर्ण विषयों का कथाओं के माध्यम से बोध करवाते है । भारतीय परम्पराएं हमें दृढनिश्चय, कार्य करने के प्रति लगन और संकल्प आदि मौलिक ज्ञान का भी आस्वाद देती हैं । जिसके द्वारा हम अपने व्यवहारिक जीवन में तथा कार्यक्षेत्र में सफलता को प्राप्त करते हैं ।
भारतीय परम्पराएं तथा व्रतादि आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार भी लाभकारी है । जिस दिन हम उपवा, करते हैं तो कम भोजन करते है और जितना भोजन करते हैं वह पोष्टिक ही होता है । हमारे पाचन तंत्र को विश्राम देने के लिए यह व्यवस्था बनाई गई है जिसे आध्यात्म के मार्ग से लोगों तक पहुंचाया गया । लेकिन इसका गूढ अर्थ और प्रयोग वैज्ञानिक ही है । आज लोग अधिक वज़न से पीडित है कुछ लोग कम वज़न से पीडित हैं । इसका नियन्त्रण करने के लिए पाचन तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका रखता है । भारतीय परम्पराओं को जानकर समझकर उचित पालन किया जाए तो स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होता है । मन निर्मल रहता है मस्तिष्क सुचारु कार्य करता है इत्यादि अनेक लाभ प्राप्त होते है ।