रक्षाबंधन की वह कथा जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा तथा दुख दूर होता है
द्वापर काल में धर्मराज युधिष्ठिर को शंका हुई और उनहोने भगवान श्रीकृष्ण को पूछा- ‘हे माधव ! मेरे मन में रक्षाबंधन की कथा जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई है । हे अच्युत ! मुझे वह सत्य कथा सुनाइए जिससे मनुष्य जीवन के कष्ट, प्रेतबाधा तथा दुखों का परिहार होता है।’ भगवान कृष्ण ने अत्यन्त सरल शब्दों में कहा – हे पांडव श्रेष्ठ धर्मराज ! जब दैत्यों तथा देवताओं में भीषण युद्ध छिड़ गया था और यह युद्ध निरन्तर द्वादश वर्षों तक ऐसे ही चलता रहा । समस्त देवता असुरो से पराजित हो गए थे। साक्षात् देवराज इन्द्र भी इस युद्ध में स्वयं को अजेय सिद्ध करने में विफल रहे थे ।
समस्त देवता इस अवस्था में देवराज इंद्र सहित अमरावती को प्रस्थान कर चुके थे। दुसरी ओर विजय को आत्मसात कर चुके दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। उसने राजपद से घोषणा करवाई कि इन्द्र इस सभा में प्रवेश न करे तथा सृष्टि में कोई भी देव,गन्धर्व व मनुष्य यज्ञादि कर्म न करें। अब ये समस्त सृष्टि मेरी पूजा करें।
दैत्यराज की इस घोषणा के उपरान्त यज्ञकर्म, वेद पठन-पाठन तथा विभिन्न धार्मिक कर्म समाप्त होने लगे। धर्म की हानि होने लगी जिससे देवताओं की स्थिति और अधिक गम्भीर हो गई। उनके बल का ह्रास होने लगा । सभी देवताओं की इस दयनीय दशा को देख कर देवराज इन्द्र देवगुरु बृहस्पति के पास गए और उनके चरणों निवेदन करने लगे हे सुरगुरु ! देवताओं की इस अवस्था का निराकरण कीजिए । इसका कोई उपाय बताइये । अगर यह स्थिति सुदृढ नहीं हुई तो ऐसी दशा में मुझे यहीं प्राण देने होंगे। मेरी अवस्था ऐसी है कि न तो में रण को छोड सकता हूँ और न ही युद्धभूमि में युद्ध कर सकता हूँ।
देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र की वेदना को सुना और उन्हे रक्षा विधान करने का परामर्श दिया । उस विकट काल में श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया गया।
‘येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।’
सुरपति इन्द्र की रानी इंद्राणी ने श्रावणमास की पूर्णिमा के पावन अवसर पर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का सूत्र लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बाँध दिया । इन्द्र यह रक्षासूत्र बंधवाकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किए । ‘रक्षाबंधन’ के प्रभाव से समस्त दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय पताका प्रकाशित हुई । इसी घटना से राखी बाँधने की रक्षाबंधन प्रथा का सूत्रपात हुआ ।
परंपरा से बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं.
तो इस कथा के अनुसार क्या पत्नी ने हर रक्षाबंधन के दिन पती को भी राखी बांधणी चाहिए?
इसमे कोई आपत्ति नही है। बांध सकते है। रक्षासूत्र के द्वारा रक्षा का विधान कहा गया है।
धन्यवाद 🙏